पितृ पक्ष प्रारंभ, गयाकोठा, सिद्धवट, रामघाट पर हो रहा तर्पण

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उज्जैन। शनिवार से पितृ पक्ष लग गया है। इस दिन से जहां श्राद्ध शुरू हो गए वहीं सोहल दिनों तक गया कोठा, सिद्धवट, रामघाट पर अपने पूर्वजों के तर्पन करनेवालों का तांता लगना शुरू हो गया। ऐसी मान्यता है कि जिस तिथि को परिजन की मृत्यु होती है, एक निश्चित अंतराल के बाद उन्हें श्राद्ध में लिया जाता है। ऐसे में श्राद्ध पक्ष में शहर में बाहर से भी हजारों लोगों का तर्पण के लिए आना होता है।

शनिवार से सोलह दिनी श्राद्ध पक्ष/पितृ पक्ष शुरू हो गया। इसके चलते गया कोठा, सिद्ध वट तथा रामघाट पर पितरों के र्तपण करनेवालों की भीड़ जुटना प्रारंभ हो गई। अगले 15 दिनों तक इन सिद्ध स्थलों पर यह क्रम चलता रहेगा। इसमें जहां शहरवासी शामिल होंगे वहीं रोजाना हजारों लोगों का बाहरी शहरों से भी आगमन होगा। ऐसी मान्यता है कि गया कोठा, सिद्ध वट अथवा रामघाट पर पितरों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। इसी मान्यता के चलते हर वर्ष इन तीर्थ स्थलों पर लोग सुबह से ही जुट जाते हैं। अनेक परिजन तो मुण्डन करवाने के बाद तर्पण करते हैं।

तीर्थ पुरोहित पं.राजेश त्रिवेदी ने बताया कि अमावस्या, पूर्णिमा मिलाकर कुल 16 तिथियां होती है। इनमें से किसी एक तिथि पर मौत होती है। जिन परिवारों में परिजन की जिस तिथि पर मौत होती है, उस दिन उसका तर्पण किया जाता है वहीं श्राद्ध भी होता है। जिनकी मृत्यु एक या दो वर्ष पूर्व होती है, उन्हे उनके समाज में कायम परंपरानुसार श्राद्ध में शामिल किया जाता है। एक बार श्राद्ध में शामिल होने के बाद हर वर्ष उसी तिथि पर संबंधित परिजन का श्राद्ध किया जाता है। बाहर से हजारों लोग अपने परिजनों की मृत्यु के चलते तर्पण करने श्राद्ध या पितृ पक्ष में जरूर से आते हैं। ऐसी मान्यता हे कि इन तिथियों पर पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं।

इधर शहर के करीबन हर परिवार मेें पूरे श्राद्ध पक्ष तक सुबह के समय महिलाएं रसोई को पोछा लगाकर साफ करेंगी। इसके बाद दहलीज पर कुमकुम, चावल, हल्दी एवं फूल रखा जाता है, जोकि पितरों के स्वागत का प्रतिक रहता है। महिलाएं रसोई में शाग, पूड़ी, खीर एवं भजिये बनती है, जोकि मालवा में श्राद्ध में बननेवाला परंपरागत भोजन है। इस भोजन की एक थाली जहां भगवान के भोग में जाती है वहीं दूसरी थाली पितरों के निमित्त तथा तीसरी गाय-श्वान के लिए निकाली जाती है। पितरों के निमित्त निकाली गई थाली का भोजन घर की छत पर रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि कोओ के रूप में पितृ आते हैं तथा भोजन करते हैं।

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