चुनाव आते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री का ऐलान – मप्र में बाहरियों को सरकारी नौकरी नहीं, 50% से ज्यादा आरक्षण की बात

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Shivraj Singh Chouhan

  • नौकरियों पर असर – इस वित्त वर्ष में 10 हजार भर्तियां प्रस्तावित हैं, इनमें अब मूल निवासियों को तवज्जो दी जा रही है।
  • शिवराज ने कहा राज्यों में प्रचलित प्रावधानों का अध्ययन कराने के बाद नियम बनाएंगे और कानून बनाकर इसे कैबिनेट में लाएंगे।

प्रदेश में 27 सीटों पर उपचुनाव होने हैं जिसे ले कर शिवराज सरकार ने नया रंग घोल दिया है, बीती शाम वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये उन्होंने कहा कि अब मप्र के मूल निवासी एवं छात्र-छात्राओं को ही सरकारी नौकरी मिलेगी। किसी बाहरी राज्य के अभ्यर्थी को यहां सरकारी नौकरी में मौका नहीं मिलेगा। उन्होंने बताया कि अन्य राज्यों में प्रचलित प्रावधानों का अध्ययन कराने के बाद नियम बनाएंगे और कानून बनाकर इसे कैबिनेट में लाएंगे। सामान्य प्रशासन विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है।

शिवराज के इस ऐलान पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि उप चुनावों को देखते हुए कहीं यह घोषणा मात्र चुनावी बनकर न रह जाए। प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता से नौकरी देने के हमारे निर्णय के अनुरूप ही घोषणा की, लेकिन यह पूर्व की तरह ही सिर्फ घोषणा बनकर ही न रह जाए। पंद्रह साल बाद आज युवाओं के रोजगार को लेकर नींद से तो जागे। यह आगामी उप चुनावों को देखते हुए मात्र चुनावी घोषणा न बनकर रह जाए, अन्यथा कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी। हमारी सरकार के फैसले पर भी रोक लगी थी मुख्यमंत्री चौहान कोर्ट की अवमानना न करें। हमारी सरकार ने भी प्रदेश के स्थानीय लोगों को नौकरी दिए जाने का फैसला लिया था, लेकिन कोर्ट ने रोक लगा दी। इसलिए पहले शिवराज सिंह कोर्ट में जाएं और जो रोक लगी हुई है उसे हटवाएं। कोर्ट से जब रोक लगी है ऐसे में ये घोषणा तो कोर्ट की अवमानना ही होगी।

 – डाॅ. गोविंद सिंह, पूर्व सामान्य प्रशासन मंत्री

कौन-कौन से बोर्ड इसके दायरे में होंगे?
प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड रह सकता है। एमपीपीएससी की भर्तियों में यह नियम लागू होगा या नहीं, इस पर फैसला बाद में।
प्रदेश के कितने युवाओं को फायदा होगा?
– विभागीय सूत्रों की मानें तो 15 से 20 लाख उन युवाओं को फायदा होगा, जो रोजगार की दहलीज पर हैं। चालू वित्तीय वर्ष में 10 हजार भर्तियां संभावित हैं, जिसकी शुरुआत 4 हजार 269 पुलिस कांस्टेबल के चयन से हो सकती है। युवा प्राथमिक शिक्षक की भर्ती का भी युवा इंतजार कर रहे हैं। इसमें ही करीब 6.5 लाख आवेदक हो सकते हैं।
सरकार क्या वैधानिक रास्ता निकाल सकती है?
– सरकार 10वीं-12वीं या फिर दोनों मप्र के स्कूलों से उत्तीर्ण करने, मूल निवासी की अनिवार्यता, आवेदन के दिन से पिछले पांच या दस साल से नियमित रहने मप्र में रहने का प्रमाण, जिला रोजगार कार्यालयों में पंजीयन अनिवार्य जैसे प्रावधान ला सकती है। ऐसा भी संभव है कि सरकार सिर्फ तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में भर्तियों के लिए नए प्रावधान लागू करे, बाकी में पुरानी व्यवस्था रहे।

कानूनी पक्ष : स्थानीय को ज्यादा जगह आरक्षण जैसा ही
किसी भी तरीके से मप्र के लोगों के लिए स्थान सुरक्षित करना आरक्षण की श्रेणी में आएगा। यह सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण की रूलिंग से अधिक होगा। अब देखते हैं सरकार क्या रास्ता निकालती है। रास्ता कोई भी हो, वह कोर्ट में चैलेंज हो सकता है।
– मुक्तेश वार्ष्णेय, पूर्व प्रमुख सचिव, जीएडी

चुनावी शिगूफा : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ
100% प्रदेश के लोगों के हित में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के विपरीत है। यह चुनावी शिगूफा है। कहावत है कि आप कुछ लोगों को कुछ समय के लिए बेवकूफ बना सकते हो, लेकिन सारे लोगों को हमेशा नहीं बना सकते। जनता मूर्ख नहीं है।
– विवेक तन्खा, वरिष्ठ वकील, सुप्रीम कोर्ट

  • दिग्जिवय सिंह सरकार में शासकीय नौकरी के लिए 10वीं मप्र से होना अनिवार्य किया गया था, लेकिन इस आदेश पर रोक लग गई।
  • एमपीपीएससी में सामान्य ज्ञान के पेपर में 80% सवाल मप्र से जुड़े पूछने का प्रावधान किया गया, यह भी नहीं चल पाया।
  • निजी भर्तियों में पूर्व में शिवराज सरकार ने 50% और कमलनाथ सरकार ने 70% नौकरियां स्थानीय को देने का प्रावधान किया है, जो अभी लागू है।

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