‘हम तो हमेशा सिंधिया को महाराज कह कर संबोधित करते थे। भारतीय जनता पार्टी ने उनको महाराज से भाईसाहब बना दिया – दिग्विजय सिंह

अगर सिंधिया वापस आना चाहेंगे तो कम से कम मैं तो विरोध करूंगा – दिग्विजय सिंह

गुना – “हार-जीत चुनाव में होती रहती है। लेकिन हार के बाद जीत भी होती है। सब्र करना चाहिए था उनको। मुझसे बातचीत होती रहती थी। मैं समझाता भी था कि आप उसमे हताश मत होइए। राजनीति में अवसर आते हैं। ऊपर-नीचे होता है, लेकिन अपनी बात पर कायम रहिए। खुद उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। लेकिन ये न उनके लिए, न उनके परिवार के लिए अच्छा संकेत है। अगर वह(सिंधिया जी) वापस आना चाहेंगे तो कम से कम मैं तो विरोध करूंगा।”
यह बात प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने अशोकनगर में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कही। दिग्विजय सिंह गुरुवार को अपने एक दिवसीय दौरे पर अशोकनगर पहुंचे। यहां उन्होंने कार्यकर्ताओं, मंडल-सेक्टर अधिकारियों की बैठक ली। इससे पहले उन्होंने मीडिया से बात की।अपनी 30 मिनिट की पत्रकार वार्ता में वह 6 मिनिट तक ज्योतिरादित्य सिंधिया पर बोले। उन्होंने कहा कि सिंधिया जी से बहुत उम्मीदें थीं। वह काफी मेहनत भी करते हैं। लंबे समय बाद यह पहला मौका है, जब दिग्विजय सिंह ने सिंधिया के भाजपा में जाने को लेकर इतने नर्म लहजे में बात की है।
मीडिया से बात करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि “अशोकनगर पहले गुना में हुआ करता था। तब से आना-जाना मेरा रहा। फिर सिंधिया जी के आने के बाद यहां से आना-जाना कम इसलिए हो गया क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं दखलंदाजी करता हूँ। लेकिन अशोकनगर के लोगों का जो प्यार मिला, वह अमिट है। हमने अशोकनगर को जिला बनाया। ये भी एक किवदंती थी कि मुख्यमंत्री अगर अशोकनगर आता है, फिर वो वापस नहीं आता। अशोकनगर जिला बनने के बाद ये किवदंती भी समाप्त हो गयी। यहां के जो विधायक हैं, वो पिछड़ा वर्ग भी हैं, अनुसूचित जाति के भी है। अब यही तय नहीं कर पा रहे कि वो किस वर्ग के हैं। उसमें गलती कांग्रेस पार्टी की भी है, हम लोगों की भी है, कि सब जानते हुए भी उनको हम लोगों ने टिकट दिया। जिसकी वजह से यहां वो जीते, वो सौदा पट गया और पार्टी छोड़कर चले गए। अर्जुन सिंह जी और मैं संजय गांधी जी के समय स्व माधवराव सिंधिया को कांग्रेस में लाये थे। और उनका कार्यकाल स्वर्णिम रहा।
हमें ज्योतिरादित्य सिंधिया से बड़ी उम्मीदें थीं। और वे काफी मेहनत भी करते हैं। पर ये उम्मीद नहीं थी कि वे पार्टी छोड़कर धोखा देकर चले जायेंगे। क्या कारण हुआ? जो बाजार में खबरें आती हैं वो ये की बड़ा सौदा हुआ। ये जब हो रहा था, उसके पहले ही मैंने कह दिया था कि 25-50 करोड़ के ऑफर आ रहे हैं। लेकिन सिंधिया जी अपने लोगों को लेकर चले जायेंगे, ये उम्मीद नहीं थी। हो सकता है उनकी नाराजगी इसलिए हो क्योंकि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। लेकिन मुख्यमंत्री किसी भी संसदीय प्रणाली में बहुमत से बनता है। 114 में से केवल 17 लोग उनके साथ गए। 5 और बाद में जुड़ गए। तो जो स्पष्ट बहुमत कमलनाथ जी के पास था, उसे कैसे नजरअंदाज कर देते। जो भी उनके काम थे कमलनाथ जी ने किए। सिंधिया स्कूल की पूरी जमीन को एक रुपये में दान दी। जो पिछली सरकारें नहीं कर पायीं थी। उनके भी जमीनों के कई प्रकरण थे ग्वालियर में, उन्हें भी कमलनाथ जी ने संवेदनशीलता से उनका निराकरण किया।
एक जगह उन्होंने(ज्योतिरादित्य सिंधिया) बयान दिया था कि अतिथि शिक्षकों की अगर कार्यवाई नहीं हुई तो सड़क पर आ जाएंगे। साथ में यह भी कहा था शिवराज सिंह चौहान के हाथ खून से रंगे हुए हैं मंदसौर में पुलिस फायरिंग के आधार पर। और उनके खून के धब्बे धुल नहीं पाएंगे। कांग्रेस छोड़ने के एक हफ्ते पहले उन्होंने करेरा में कर्जमाफी के प्रमाण पत्र बांटे। सरकार की प्रशंसा की। फिर क्यों छोड़कर चले गए। और क्या मिला? एक विभाग जिसके पास न एयरपोर्ट है, न हवाई जहाज है।”

भाजपा ने उन्हें भाईसाहब बना दिया

पूर्व CM दिग्विजय सिंह ने कहा कि “हम तो हमेशा उनको महाराज कह कर संबोधित करते थे। भारतीय जनता पार्टी ने उनको महाराज से भाईसाहब बना दिया। जो मान सम्मान कांग्रेस पार्टी की लीडरशिप उन्हें देती थी, वो तो वहां कहीं मिल नहीं सकता। सोनिया जी, यहउल जी और प्रियंका जी से बिना अपॉइंटमेंट के वो मुलाकात कर सकते थे। उनके घर जा सकते थे। जो अधिकार बड़े-बड़े नेताओं को नहीं था। हम को भी नहीं था। फिर नाराजगी किस बात की थी।

उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी

अगर कोई योजनाओं के प्रति नाराजगी थी, तो उसका उल्लेख करें। आज तक वो नहीं बता पाए कि नाराजगी किस बात की थी, क्यों गए? स्व माधवराव सिंधिया जी की जो वसीयत थी कांग्रेस की, उसको उन्होंने भुनाया। और भुना कर फिर चले गए। हार-जीत चुनाव में होती रहती है। लेकिन हार के बाद जीत भी होती है। सब्र करना चाहिए था उनको। मुझसे बातचीत होती रहती थी। मैं समझाता भी था कि आप उसमे हताश मत होइए। राजनीति में अवसर आते हैं। ऊपर-नीचे होता है, लेकिन अपनी बात पर कायम रहिए। खुद उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। लेकिन ये न उनके लिए, न उनके परिवार के लिए अच्छा संकेत है।” उनसे सिंधिया के वापस कांग्रेसी में आने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर वह(सिंधिया जी) वापस आना चाहेंगे तो कम से कम मैं तो विरोध करूंगा।”