एमपी भाजपा कार्यकारिणी: सिंधिया नाम के कारण नहीं चमकेगी राजनीति

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पहले मंत्रिमंडल विस्‍तार, फिर भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी का गठन.. सिंधिया समर्थकों की आस अब निगम मंडल में नियुक्ति पर टिकी।

सम्‍मान के लिए कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए राज्‍यसभा सदस्‍य ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया समर्थकों के हिस्‍से में अभी और इंतजार आया है। पहले मंत्रिमंडल विस्‍तार, फिर भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी का गठन। सिंधिया समर्थकों की आस पूरी नहीं हुई है। अब उन्‍हें निगम मंडल में नियुक्ति से उम्‍मीद है मगर यह राजनीतिक मलाई पाने के लिए जहां एक ओर उनके आका सिंधिया पर अधिक दबाव बनाना होगा तो इन नेताओं को अपना भाजपाई होना भी सिद्ध करना होगा।

बुधवार को मध्‍य प्रदेश भाजपा के अध्‍यक्ष विष्‍णु दत्‍त शर्मा की कार्यकारिणी की घोषणा हुई तो सभी की निगाहें सिंधिया समर्थकों को तलाशते रह गईं। टीम भाजपा में सिंधिया समर्थक नेताओं को जगह नहीं मिली है। कांग्रेस सरकार गिराकर भाजपा में शामिल हुए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को उप चुनाव में प्रचार के लिए सूची में दसवें स्‍थान पर रखा गया था। प्रदेश कार्यकारिणी में सिंधिया खेमे को यह दसवां स्‍थान भी हासिल नहीं हुआ है। प्रदेश अध्‍यक्ष विष्‍णु दत्‍त शर्मा ने 12 उपाध्‍यक्ष और 12 प्रदेश मंत्री के साथ सात मोर्चा अध्‍यक्ष नियुक्‍त किए हैं। इस बार कार्यकारिणी में नए चेहरों को तवज्‍जो दी गई है मगर भाजपा के लिए ‘नए चेहरे’ सिंधिया समर्थक नेताओं को संगठन में अभी स्‍थान हासिल नहीं हुआ है।

सिंधिया समर्थकों को शामिल नहीं करना पंक्ति भेद करने जैसा ही समझा जाना चाहिए। भाजपा और सिंधिया समर्थकों में यह अंतर पहले दिन से दिखाई दे रहा है। अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में सिंधिया अलग प्रचार करते नजर आए। उन्‍होंने सार्वजनिक रूप से कहा भी कि उप चुनाव में किसी ओर की नहीं बल्कि महाराज यानि सिंधिया स्‍वयं की प्रतिष्‍ठा दांव पर लगी है। चुनाव के बाद उन्‍होंने भितरघात करने वाले भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं के प्रति नाराजगी भी जताई मगर अब तक तो संगठन ने उनकी इस नाराजगी को महत्‍व नहीं दिया है।

फिर अपने दो समर्थकों तुलसी राम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनवाने के लिए सिंधिया को तीन बार मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह से मिलना पड़ा। समर्थकों को पद दिलवाने के लिए सिंधिया बतर्ज शक्ति प्रदर्शन अपने समर्थकों के साथ मुख्‍यमंत्री चौहान से मिलने पहुंचे ताकि उनकी सुनवाई जल्‍द हो। उप चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे सिंधिया समर्थक दो नेता मंत्री बनाए जा चुके हैं मगर मामला उन तीन पूर्व मंत्रियों को लेकर उलझा हुआ है जो चुनाव हार गए हैं। उपचुनाव में हार के बाद मंत्री एदल सिंह कंषाना, इमरती देवी एवं गिर्राज दंडोतिया को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। सिंधिया चाहते हैं कि इन नेताओं को निगम मंडल में नियुक्ति दे कर पर्याप्‍त महत्‍व दे दिया जाए। सिंधिया की यह ख्‍वाहिश भी जरूर रही होगी कि संगठन में भी उन्‍हें व उनके समर्थकों को पर्याप्‍त जगह मिलेगी।

मगर, ऐसा हो न सका। उल्‍टे सत्‍ता में सिंधिया समर्थकों को मिली तवज्‍जो से भाजपा संगठन में नाराजगी घर करती जा रही है। भाजपा के कई वरिष्‍ठ विधायकों को उम्‍मीद थी कि तीसरे मंत्रिमंडल विस्‍तार में उन्‍हें जगह मिलेगी मगर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केवल दो सिंधिया समर्थकों को ही मंत्री बनाया। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद पार्टी में अंदरूनी असंतोष अधिक गहरा गया है। इस नाराजगी की सार्वजनिक अभिव्‍यक्ति पूर्व मंत्री और वरिष्‍ठ विधायक अजय विश्नोई ने की। उन्‍होंने ट्वीट कर कहा है कि महाकौशल अब उड़ नहीं सकता फड़फड़ा सकता है। मध्य प्रदेश में सरकार का पूरा विस्तार हो गया है।

ग्वालियर, चंबल, भोपाल, मालवा क्षेत्र का हर दूसरा विधायक मंत्री है। सागर, शहडोल, संभाग का हर तीसरा भाजपा विधायक भी मंत्री है, लेकिन विंध्य और महाकौशल की उपेक्षा हुई है। इससे पहले भी सत्‍ता में सिंधिया की भागीदारी से भाजपा में धधक रही नाराजगी की आग एकाधिक बार सतह पर आ चुकी है। वर्चस्‍व के इस संघर्ष को देखते हुए प्रदेश अध्‍यक्ष विष्‍णु दत्‍त शर्मा ने सिंधिया समर्थकों को संगठन में भाजपा नेताओं पर तरजीह नहीं दी है। इसकी एक वजह भाजपा में इस तर्क पर बन रही सहमति भी है कि सिंधिया ने सरकार बनवाने में मदद की है तो उन्‍हें सत्‍ता में मनचाहा हिस्‍सा दे दिया जाए मगर संगठन में दबाव की राजनीति नहीं चलेगी।

भाजपा के कई वरिष्‍ठ नेता पार्टी में सिंधिया समर्थकों का अलग खेमा बनने और इसे सिंधिया भाजपा कहे जाने से भी खफा हैं। उनका मानना है कि सत्‍ता में भागीदारी दे दी गई है। अब सिंधिया समर्थकों को भाजपा में तब ही कोई पद मिलेगा जब वे पार्टी में अपना स्‍थान बना लेंगे। यदि संगठन में दबाव के आगे झुक कर पद दिए गए तो पार्टी का कैडर प्रभावित होगा। भाजपा में कांग्रेस शैली की राजनीति आरंभ होने से खफा नेताओं ने हर मंच पर अपनी बात रखी है। प्रदेश कार्यकारिणी में सिंधिया समर्थकों की अनुपस्थिति इसी राय का प्रतिबिंब है। इस कार्यकारिणी का संदेश साफ है कि टीम वीडी शर्मा या जिला व मंडल संगठन में सिंधिया समर्थकों को पैराशूट इंट्री नहीं मिलेगी। उन्‍हें स्‍वयं को सिद्ध करना होगा तब ही जगह मिलेगी। सत्‍ता में प्रेशर पॉलिटिक्‍स को झेल लिया गया है मगर संगठन में यह राजनीति नहीं चलेगी। खासकर तब जब भाजपा ने अपने वरिष्‍ठ नेताओं की नाराजगी की परवाह न करते हुए उन्‍हें किनारे कर दिया है।

भाजपा का राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व नए और युवा चेहरों को संगठन में जगह देने का एजेंडा लागू कर चुका है। प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा ने भी इसी पर कायम रहते हुए युवा और नए चेहरों को जगह दी है। उनका यह कदम पार्टी के लिए जैसा भी हो मगर सिंधिया खेमे के लिए तो निराशाजनक ही है। जहां उन्‍हें भाजपा में तेजी से कायम हो रही इस राय से मुकाबला करना है कि सिंधिया को कांग्रेस सरकार गिराने के बदले जितना दिया जाना था वह दिया जा चुका है। अब संगठन में कुछ पाना है तो मैदान पर काम करो। यानि सिंधिया समर्थकों को मात्र सिंधिया के साथ जुड़े होने से लाभ नहीं मिलेगा। उन्‍हें अपनी राजनीतिक जमीन तलाशनी होगी। उन्‍हें भाजपा में बरसों से काम कर रहे ‘देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं’ के बीच अपनी निष्‍ठा साबित करनी होगी। ऐसे नेताओं के सामने यह मुश्किल होगी कि वे अपने आका ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के प्रति समर्पित रहें कि भाजपा के प्रति निष्‍ठा गढ़ें।

ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के लिए भाजपा की इस नीति के साथ तालमेल बैठाना भी एक चुनौती है। उन्‍हें कांग्रेस में क्षत्रप की तरह आदेश क्रियान्वित करवाने की आदत है, जबकि भाजपा की हायरार्की अलग हैं। पार्टी उन्‍हें महत्‍व दे भी दे तो समर्थकों के लिए तो खुद को निष्‍ठावान और समर्पित साबित करने का संकट है ही। वे भी जान रहे हैं कि केवल सिंधिया नाम होने के कारण उनका पत्‍थर भाजपा के राजनीतिक जल में तैर नहीं पाएगा।

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