सर्वे – मुरैना सीट में गुर्जर जाति का दबदबा, कौन सी पार्टी की ओर जा सकते हैं वोटर ?

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मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव होना है. जिनमें से ग्वालियर-चंबल की 16 सीटें सबसे अहम रहने वाली है, जिन पर कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए सिंधिया का प्रभाव रहा है. मुरैना विधानसभा सीट भी ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों में से एक है. 

भोपाल: मध्यप्रदेश में उपचुनाव का ऐलान हो गया है. राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी.

MP उपचुनावी की जंग

सीट का नाम-मुरैना विधानसभा
जनसंख्या– 254558
वोटर- पुरुष -140152
महिला-114389 

विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख जातियां / उपजातियां
(राजपूत, ब्राह्मण, ओबीसी, अनुसूचित जाति, वैश्य)
राजपूत- तोमर,सिकरवार
ब्राह्मण- शर्मा मिश्रा उपाध्याय
ओबीसी- गुर्जर, कुशवाह, यादव, राठौर, भोई, नाई, धोबी, कोली,
अनुसूचित जाति- जाटव, बाल्मीकि
वैश्य- गुप्ता, जैन, गर्ग

सीट पर कौन सी जाति डोमिनेट करती है?मुरैना विधानसभा गुर्जर जाति बाहुल्य क्षेत्र है.

गुर्जरों में यहाँ मावई, हर्षाना, कंषाना, राणा और घुरैया उपजातियों में हैं लेकिन इन मतदाताओं में भी आपसी मतभेद है. कांग्रेस या बीजेपी की तरफ से गुर्जर उम्मीदवार में उतरते है तो गुर्जर वोट आपस में बट जाते हैं.राजपूत और ब्राह्मण मतदाताओं की कुछ संख्या भी है लेकिन गुर्जर मतदाताओं की सबसे अधिक आबादी है. निर्णायक भूमिका में अनुसूचित जाति के जाटव मतदाता और ओबीसी में आने वाली अन्य जातियां भी हैं. मुरैना विधानसभा में वैश्य वोट बैंक भी अपना रसूख रखता है.

जातियों का पैटर्न क्या है?
कम संख्या में हैं राजपूत

मुरैना विधानसभा शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में समान रूप से पसरी है. यहाँ राजपूत मतदाताओं की संख्या तो है लेकिन राजपूत बाहुल्य सीट नहीं है मुरैना विधानसभा. 

ब्राह्मण मतदाता अपनी जाति के कैंडिडेट की तरफ रखते हैं झुकाव     

मुरैना विधानसभा सीट के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो बहुजन समाजवादी पार्टी( बसपा) ही एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी रही है जो ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती रही है. अनुसूचित जाति के मतदाता भी करीब 30000 होने और उनका झुकाव बसपा की तरफ रहने के कारण दलित और ब्राह्मण वोटों का समीकरण चुनावी समीकरण को त्रिकोणीय बना देती है और यदि इस समीकरण को ओबीसी और राजपूत मतदाताओं का समर्थन भी मिला जाता है तो सीट का कब्जा हो जाता है.2008 में परशुराम मुद्गल ने बसपा से जीत दर्ज की थी. मौजूदा उपचुनाव में बसपा ने बाह्मण वर्ग के रामप्रकाश राजौरिया को उम्मीदवार बनाया है.

अनुसूचित जाति का बसपा की तरफ रहता है झुकाव 

अनुसूचित जाति के जाटव वोट यहाँ अच्छी खासी तादाद में हैं. गुर्जर और दलित वोटों में मतभेद है जिसका सीधा फायदा बसपा को मिलता है क्योंकि वह गुर्जर उम्मीदवारों के स्थान पर ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव लगाते हैं. बसपा के पक्ष में दलित और ब्राह्मण का समीकरण बनने से मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है और यदि ओबीसी की अन्य जातियां में से किसी का समर्थन मिल जाता है तो मुकाबला और भी कड़ा हो जाता है.

वैश्य जाति के मतदाता भी हैं निर्णायक

वैश्य जाति के मतदाताओं की संख्या यहाँ 25000 के करीब है. जो निर्णायक भूमिका में रहते हैं. वैश्य समाज से सोनेराम गुप्ता बीजेपी की तरफ से 1990 और 1998 में विधायक रहे हैं. वैश्य जातियों में यहां गुप्ता, जैन और गर्ग प्रमुख हैं. 

जातियों का मुद्दा-राजपूत: 

रोजगार और आरक्षण  राजपूत मतदाताओं के लिये रोजगार का मुद्दा और आरक्षण का मुद्दा प्रमुख है. मुरैना क्षेत्र का दूध पूरे देश में जाता है लेकिन यहाँ के लोगों को रोजगार के लिये दूसरे राज्यों का रूख करना पड़ता है. 

झुकाव: बीजेपी की तरफ
प्रमुख नेता: नरेन्द्र सिंह तोमर 
ब्राह्मण: रोजगार और आरक्षण  ब्राह्मण मतदाताओं के लिये रोजगार का मुद्दा और आरक्षण का मुद्दा प्रमुख है. मुरैना क्षेत्र का दूध पूरे देश में जाता है लेकिन यहाँ के लोगों को रोजगार के लिये दूसरे राज्यों का रूख करना पड़ता है. मुरैना विधानसभा के ब्राह्मण मतदाताओं को कांग्रेस या बीजेपी की तरफ ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारने से खासी नाराजगी दिखती है.

झुकाव: अपने जाति के उम्मीदवार के प्रति 
प्रमुख नेता: जाति समीकरण के हिसाब से 
ओबीसी: रोजगार और आरक्षण   ओबीसी मतदाताओं के लिये रोजगार का मुद्दा और आरक्षण का मुद्दा प्रमुख है. मुरैना क्षेत्र का दूध पूरे देश में जाता है लेकिन यहाँ के लोगों को रोजगार के लिये दूसरे राज्यों का रूख करना पड़ता है. शासकीय योजनाओं का ठीक प्रकार से लाभ नहीं मिलना भी रहता है. 

झुकाव: कांग्रेस बीजेपी और बसपा तीनों की तरफ
प्रमुख नेता: गुर्जर समाज में दो बडे नेता हैं रूस्तम सिंह और रघुराज कंषाना 
अनुसूचित जाति: दबंगई और पट्टे न मिलने की टीस    
अनुसूचित जाति के मतदाताओं के लिये सामाजिक और जातिगत भेदभाव एक ज्वलंत मुद्दा रहा है. जातिगत भेदभाव ने उन पर हो रहे शोषण की अनेक कहानियां कहीं है. सन् 2000 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा दिये गये पट्टे की जगह भी चिन्हित न होने से ग्रामीण इलाकों के दलितों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. 

झुकाव: बसपा की तरफ 
प्रमुख नेता:
वैश्य: व्यापार घाटा और जीएसटी   वैश्य समूदाय व्यवसाय से आजीविका चलाता है लेकिन जीएसटी को अपने व्यवसायिक लाभ के लिये मूफीद नहीं मानता. वो लगातार यह मुद्दा उठाता रहा है. 

झुकाव: अपने हितों के अनुसार समीकरण बनाते हैं
प्रमुख नेता: रमेश गर्ग

इस सीट पर कांग्रेस-बीजेपी की मुश्किलें व ताकतकांग्रेस की ताकत: 
सिंधिया के बीजेपी में जाने से बीजेपी के कई नाराज नेता कांग्रेस की मदद कर सकते है.
कांग्रेस की चुनौती: 
सिंधिया से जुड़े नेता अब भी पार्टी के अंदर है. जिनकी भूमिका अब तक तय नही.  

बीजेपी की ताकत: 
इस क्षेत्र में बीजेपी का बड़ा वोट बैंक है. सिंधिया राजघराने का अच्छा खासा प्रभाव है. 
बीजेपी की चुनौती: 
भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को साथ लाना बड़ी चुनौती है. अभी तक ज्यादातर नेता पार्टी की तमाम बैठकों से दूर रहे है. यह पार्टी के लिए चिंता का विषय है. 

पिछले तीन विधानसभा चुनावों का नतीजा:विधानसभा चुनाव-2008  
2008 में बसपा से परशुराम मुद्गिल विजयी रहे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के सोबरन मावई रहे. तीसरे स्थान पर बीजेपी से रूस्तम सिंह. 

किस पार्टी को कितने परसेंट
बसपा को 38.66%, कांग्रेस को 33.40% तथा बीजेपी को 23.31%  वोट मिले. 

विधानसभा चुनाव- 2013
बीजेपी के रूस्तम सिंह बिजयी रहे। बसपा के रामप्रकाश राजौरिया दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस के दिनेश गुर्जर तीसरे स्थान पर.

किस पार्टी को कितने परसेंट
बीजेपी को 40.52%, बसपा को 39.31 %तथा दिनेश गुर्जर को 15.57%  वोट मिले. 

विधानसभा चुनाव- 2018
कांग्रेस के रघुराज कंषाना विजयी रहे. बीजेपी के रूस्तम सिंह दूसरे नंबर पर तथा बसपा के बलबीर डंडौतिया तीसरे स्थान पर. 

किस पार्टी को कितने परसेंट वोट
कांग्रेस को 45.62 %, बीजेपी को 31.83% तथा बसपा को 13.99% वोट मिले.

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