हाथरस कांड में कांग्रेस ने सरकार को बैकफुट पर खड़ा किया, गरमाई राजनीति

हाथरस कांड और कृषि कानून 2020 ने कांग्रेस को मध्यम वर्ग और किसानों को भाजपा के खिलाफ लामबंद करने का बड़ा मौका दिया है. दिल्ली के निर्भया कांड की तरह ही उत्तर प्रदेश में एक दलित लड़की की निर्मम हत्या कर दी गई. कांग्रेस इस घटना से बीजेपी को जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर घेर रही है.
नई दिल्ली. हाथरस कांड पर देश की राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है. एक ओर जहां विपक्षी दल मामले में पीड़िता के परिजनों के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं तो वहीं योगी सरका को लेकर लोगों का गुस्सा सड़क तक आ गया है. कांग्रेस ने इस मामले में पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. हाथरस कांड और कृषि कानून 2020 ने कांग्रेस को मध्यम वर्ग और किसानों को भाजपा के खिलाफ लामबंद करने का बड़ा मौका दिया है.
दिल्ली के निर्भया काण्ड की तरह ही उत्तर प्रदेश में एक दलित लड़की की निर्मम हत्या कर दी गई. कांग्रेस इस घटना से बीजेपी को जाति, वर्ग और लिंग के आधार पर घेर रही है. गौरतलब है कि दलित लड़की पर अत्याचार करने वाले चारों आरोपी ऊंची जाति के हैं जो कि दिल्ली के निर्भया केस (2012) और भंवरी देवी केस (1992) की याद को ताजा करते हैं. बता दें कि साल 2012 के निर्भया कांड के बाद से देश में बलात्कार के अब तक ढाई लाख मामले दर्ज हो चुके हैं. केवल 2019 में 33 हजार मामले सामने आए थे, जिनमें से 11 फीसदी मामले दलित लड़कियों से जुड़े हैं.
बीते महीने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी गला घोंटकर हत्या करने का मामला सामने आया था. हफ्तेभर पहले ही बलरामपुर में 22 वर्षीय छात्रा को जबरन ड्रग्स देकर उसका बलात्कार किया गया था. वहीं, पीड़िता ने अस्पताल जाते वक्त रास्ते में ही दम तोड़ दिया था. लेकिन, सवाल यह है कि हाथरस कांड पर देश का माहौल इतना गर्म क्यों हैं.
क्या लखीमपुर खीरी और बलरामपुर के बलात्कार और हत्या के मामलों का कोई औचित्य नहीं है? क्या साल 2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार मामले को लखीमपुर-खीरी मामले से अलग देख सकते हैं? क्योंकि दोनों ही मामलों में पीड़िता की नृशंस हत्या की गई थी. बता दें कि हाथरस और बलरामपुर मामले में पीड़िता का अंतिम संस्कार जल्दबाजी में किया गया, जिससे यूपी की बीजेपी सरकार पर बड़ा सवाल खड़ा होता है.
कांग्रेस को देख विपक्षीय दलों ने आवाज बुलंद कर दी है
प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने हाथरस का रुख इसलिए किया क्योंकि यह मामला निम्न और उच्च जाति के बीच आकर अटक गया है. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी के खिलाफ दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर बड़ा विरोध करते दिखे और गांधी भाई-बहन को विरोध के बीच पैदल ही हाथरस जाना पड़ा. हाथरस कांड पर यूथ कांग्रेस ने भी जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की है. वहीं, अन्य विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी भी इस जंग में कूद चुकी है. लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा अकेले ही यूपी कांग्रेस में जान फूंकने में जुटी हुई हैं. कांग्रेस पहले ही इस बात की पैरवी कर चुकी है कि बलात्कार के मामलों पर विरोध की आवाज को न दबाया जाए.
हाथरस मामले में बीजेपी कांग्रेस के सामने कमजोर दिखती है
अब जब इस मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी मान लिया है, तो इसे कांग्रेस की नैतिक जीत भी कह सकते हैं. हालांकि राजस्थान में बलात्कार के मामलों के उजागर होने से भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा है. ऐसे में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी के खिलाफ लोगों में विरोधी भावनाओं को हवा देना जारी रखेगी. इधर, विपक्षी दलों का फार्म एक्ट के खिलाफ अभियान अभी भी जारी है और इससे कांग्रेस को किसानों से जुड़ने का बड़ा मौका हाथ लगा है. कांग्रेस, बीजेपी को हर तरह से पटकनी देने में लगी हुई हैं चाहे उसमें ललित मोदी, नीरव मोदी और राफेल से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले हों या फिर नागरिकता कानून, राजकोषीय घाटा, नोटबंदी, जीसटी और कोविड-19 के प्रति सरकार की विफलता हो. लेकिन बीजेपी इन सभी मुद्दों पर समीकरण बदलकर राजनीतिक लाभ उठा चुकी है. हालांकि हाथरस कांड ने बीजेपी को कमजोर कर दिया है. इसका एक कारण यह भी है कि सत्तारूढ़ दल के पास प्रियंका गांधी को जवाब देने के लिए कोई मजबूत महिला दावेदार नहीं है.