वादे वाली सरकार की कर्जे से यारी, 169 दिन में 8000 करोड़ की उधारी

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शिवराज सरकार प्रदेश में वित्तीय प्रबंधन के लिए लगभग हर महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के माध्यम से कर्ज ले रही है. मौजूदा वित्तीय वर्ष में अब तक 8000 करोड़ रुपए का कर्ज शिवराज सरकार ले चुकी है.

भोपाल: मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति पहले ही चरमराई हुई थी, अब कोरोना काल में राज्य पर आर्थिक संकट और गहरा गया है. मध्य प्रदेश की सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 169 दिन के कार्यकाल में 8000 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुके हैं. शिवराज सरकार प्रदेश में वित्तीय प्रबंधन के लिए लगभग हर महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के माध्यम से कर्ज ले रही है. शिवराज सरकार ने एक बार फिर से 1000 करोड़ का कर्ज लिया है.मौजूदा वित्तीय वर्ष में अब तक 8000 करोड़ रुपए का कर्ज शिवराज सरकार ले चुकी है. कोरोना संकट की वजह से राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्य को लगभग साढ़े 14 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त कर्ज लेने की सशर्त अनुमति दी है. इसे मिलाकर राज्य सरकार ने वर्ष 2020-21 में 40 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज ले सकती है.

क्यों लेना पड़ रहा है कर्ज 

दरअसल, कोरोना संक्रमण की वजह से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं. न तो निर्माण कार्य गति पकड़ पा रहे हैं और न ही औद्योगिक गतिविधियां पटरी पर आ पाई हैं. इस कारण करों से होने वाली आय घट गई है. इसके मद्देनजर ही प्रदेश सरकार ने इस बार बजट का आकार लगभग 28 हजार करोड़ रुपये घटाकर 2 लाख 5 हजार करोड़ रुपये से कुछ अधिक रखा है. इसमें भी अधिकांश विभागों पर राशि खर्च करने से पहले वित्त विभाग की अनुमति लेने का प्रावधान कर दिया गया है.

अनावश्यक खर्च पर रोक लगाने के दिए निर्देश

सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार को अप्रैल से जुलाई तक करीब 28 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले माह वित्त सहित अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ वित्तीय प्रबंधन पर बात की और अनावश्यक खर्च पर रोक लगाने के निर्देश दिए. आने वाले समय में राशि की जरूरत होगी. इसके मद्देनजर ही मुख्यमंत्री ने अपने वेतन-भत्ता का तीस फीसद हिस्सा सितंबर तक मुख्यमंत्री राहत कोष में देने का फैसला किया है.वित्त विभाग के मुताबिक पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति कर्ज लेने की अतिरिक्त सीमा को लेकर बैठक की थी. इसमें निर्देश दिए गए थे कि जो कर्ज सशर्त मिलना है, उसके लिए शर्तें समय सीमा में पूरी की जाएं ताकि कर्ज लेकर व्यवस्थागत सुधार किए जा सकें. वहीं राज्य की पूर्व से तय सीमा के भीतर कर्ज भी ऐसी रणनीति बनाकर लिया जाए, जिससे विकास परियोजनाओं की गति बनी रहे.

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